Thursday, October 10, 2024

मैं तुझको पढ़ कर तेरी जबां में लिख रहा हूं

मैं फिर मादरी जबां में कुछ लिखना चाहता हूं


सिर्फ हमबिस्तर हो जाना काफी नहीं तेरा मेरा

मैं तुझे गले लगा कर खूब रोना चाहता हूं


सुना है तेरे शहर के रास्ते भुलभुलैया से है

तेरे शहर के रास्तों में खो जाना चाहता हूं


अगर नशे में हो तुझको भूल जाना मुमकिन

मैं मेरे आंगन में एक मैकदा बनाना चाहता हूं


~ विशाल

Saturday, October 5, 2024

वो हर पत्थर पर अपना नाम तराशती गई,

मैं हर लकीर से अपनी पहचान मिटाता गया


उसकी आहट से पहले, बाग़ था वीरान सा,

फिर एक बोतल टूटी, और अत्तर महकता गया


मैंने बिस्तर की सिलवटों को संजोग रखा है वैसे ही

जब भी गूंजी घुंगरू की सदा, मैं और पिता गया


मुझे तेरा शहर कभी रास न आएगा 

मैं जिस भी गली से गुजरा तेरी यादों का था साया


~ विशाल