कैसे कहूं वो कैसा था
वो एक राज़ के जैसा था
टूट के जो मैं बिखर न जाऊं,
मुझे समेटे वैसा था।
हर दर्द में मरहम बनकर,
वो चुपके से आ बैठा था,
दो लफ्जों में अपना सा लगा,
वो कुछ शेर के जैसा था।
दूर था लेकिन पास लगा,
जैसे मेरा साया था,
सांसों में उसकी खुशबू थी,
और नाम लबों पे छाया था।
~ विशाल
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