Sunday, September 29, 2024

 कैसे कहूं वो कैसा था

वो एक राज़ के जैसा था

टूट के जो मैं बिखर न जाऊं,

मुझे समेटे वैसा था।


हर दर्द में मरहम बनकर,

वो चुपके से आ बैठा था,

दो लफ्जों में अपना सा लगा,

वो कुछ शेर के जैसा था।


दूर था लेकिन पास लगा,

जैसे मेरा साया था,

सांसों में उसकी खुशबू थी,

और नाम लबों पे छाया था।


~ विशाल 


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